धुरविरोधी न सही आलोचक अब भी है ।
असहमति की आवाज़ एक बार फिर उठी और हमारा दूसरा पोस्ट भी फिर से प्रासंगिक हो उठा । मैने अपना चिट्ठा मार्च 2007 में शुरु किया था ,लिखता तो बहुत पहले से रहा हूँ अंग्रेज़ी में । अपनी इस हिन्दी पोस्ट में मैने सहमति में आस्था रखने वालों से कहा था कि थोडी असहमति को भी जगह दी जाये । जो व्यक्ति हट कर सोचता है उसे भी बात कहने का पूरा मौका मिले । किसी को भे अपनी बात सुनाने का पूरा हक है और यह पढने वालों की मर्ज़ी है कि वे किसे पढना चाहें । तब हमारा भी स्वागत बडी अद्भुत टिप्पणियों या कहें धमकियों से हुआ था । बेंगाणी जी ने तो क्या सुना होगा जो हमने उस समय सुना, आप भी देखे अगर चाहे तो । भाषा की उस अभद्रता पर किसी ने चिंता नही दिखाई । नारद के किसी भी पैरोकार ने नही। मुझे याद पडता है उस विरोध और अभद्रता के शिकार नोटपैड और मसिजीवी भी हुए थे । मुझे आलोचक बनाम नोटपैड भी कहा गया और आलोचक बनाम मसिजीवी भी । आलोचक आप सबके भीतर नही है क्या ?दिक्कत इस बात की रही कि मेरा प्रोफाइल मेरी कोई विशिष्ट पहचान नही बतात था । यहाँ धुरविरोधी और मैं एक से हो जाते हैं ।
आज समझा ,सिर्फ इसलिए नारद समर्थक उस समय चुप थे क्योंकि मैं जो बात कह रहा था शायद अन्दर्खाने उससे असहमति थी ही वहाँ ।
खैर ,धुरविरोधी का जाना दुखद है [कम से कमे हमारे लिए तो] लेकिन इससे आलोचक आज फिर से सक्रीय हो उठा है । और अबकी बार सक्रीय ही रहेगा । आप चाहे मुझे जे.एल. सोनारे समझें, नोटपैड समझें ,मसिजीवी समझें,अनामदास समझें या धुरविरोधी का ही पुन: अवतरण । कोई फर्क नही पडता । फर्क पडेगा जब विचार को विचार से मुँह तोड जवाब दे सकेंगे सभी । न कि प्रशासन या अभद्रता की आड लेकर ।मैं जानता हूँ एक बार फिर मै धमकियों और अभद्र भाषा को निमंत्रण दे रहा हूँ पर शायद समय की यही दरकार है । सबने मुद्दे को समझने में हमेशा जल्दबाज़ी ,हडबडी और आवेश से काम लिया है ।यहीं मुझे परेशानी है ।बुद्धिजीवी की यह निशानी नही है । किसी भी व्यक्ति ने कभी भी राहुल की भाषा का समर्थन नही किया ,निन्दा ही की है । तो क्या उसके शब्दो का जवाब देने में हमारे शब्द नाकाफी थे जो कडा कदम उठाना पडा ?क्या भाषा की अभद्रता का जवाब देने के लिए ,अभद्र हुए बिना भी , भाषा के ही माध्यम से कोई तोड नही निकलता ? और अब जबकि बहुत से ब्लॉगर भाई कह रहे हैं कि ऐसा मत करो तो नारद की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही है । राहुल की भाषा के चक्कर में राहुल के विचार पर तो हर कोई बात करना ही भूल गया। अरे भाई किसी को मारना ही है तो वैचारिक स्तर पर मारो ।
अंत में तीन बातें और ------
1.संजय की जगह अगर मैं यानी आलोचक या फिर किसी और चिट्ठाकार को गन्दा नैपकिन कहा गया होता तो भी क्या राहुल के खिलाफ यही कार्यवाही होती ??? मुझे सन्देह है कि ऐसा नही होता । भाषिक सांत्वना दे दी जाती कि ऐसा तो होता रहता है किस किस से लडने बैठोगे ! और यह सांत्वना भी जीतू तब देते यदि मै उनसे गुहार करता ।
2. नारद से आगे भी जहाँ और है । अब लगने लगा है क्योंकि हमें हर तरह के मुघालते से बाहर निकाल दिया है नारद के ऐसे व्यवहारों ने ।
3. अब समय यह भी आ गया है कि नए फीड एग्रीगेटर सामने आएँ और हिन्दी चिट्ठा जगत का वास्तविक विस्तार करें ।
आमीन !