रविवार, 18 मार्च 2007

सहमति-असहमति: कुछ दिलचस्प टिप्पणिया.

आचार सहिता , मुखौटे , ब्लोगर की पहचान , अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता को लेकर पिछले दिनों बहुत कुछ लिखा गया है। अगर किसी से इस बारे मे कुछ छूट गया हो तो वह इसके बारे मे मसिजीवी, नोटपैड ,ध्रुवविरोधी ओर अन्य कई ब्लोग पर देख सकते है। आलोचक के ब्लोग पर भी कुछ टिप्पणिया है।
उनमे से कुछ टिप्पणिया ऐसी है जो मुझे लगता है कि सबके साथ बाटनी चाहिए :

एक अनसुलझी पहेली : जिन्दगी said...
मि। आलोचक। वैसे तो मेरे पास इतना समय नहीं है कि ब्लागर्स में अपना समय दे पाऊं। फिर भी आज आपकी आलोचना पर नजर गयी। यह आलोचना कम बल्कि एक कुंठित व्यक्ति के शब्द हैं जो यह व्यक्त करना चाह रहे हैं कि आपको नहीं बुलाया गया तो आपने लेखन के माध्यम से अपनी कुंठा को सबके सामने व्यक्त कर दिया। यह तो वही हाल हुआ कि एक पुस्तक विमोचन में विख्यात आलोचक को नहीं बुलाया गया तो उन्होंने दूसरे दिन उस पुस्तक की काफी बुरी आलोचना पत्रिका में प्रकाशित करवा दी थी। आप तो आलोचक हैं, आपको तो आज से २० वर्ष पहले के इन वरिष्ठ आलोचक के बारे में पता ही होगा। ठीक उसी प्रकार का आपका बर्ताव है।

एक अनसुलझी पहेली : जिन्दगी said...
यह फालतू की बै-सिर पैर की आलोचनाएं करना बन्द कीजिये। यह आलोचना करके आप क्यूं अपने को अनपढ, गंवार और जाहिल साबित करना चाहते हैं.... समझ से परे हैं। वैसे आप जो भी हैं यह तो मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि एक व्यक्ति दो भूमिकाएं निभा रहा है। क्या बात है दोहरी जिन्दगी जीना तो कोई आपसे सीखे। मेरा निवेदन है कि पहले कुछ अच्छी आलोचना पढना सीखें। उसके बाद ही कुछ लिखने की कोशिश करेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा। यह छिपने का नाटक क्यूं... क्या डरते हैं आप लोगों। यह पहचान क्यूं छिपाते हैं आप। सामने आइये। आप तो शायद दिल्ली में है न। सामने आइये और फिर मैं आपसे बात करता हूं आलोचना की और आलोचना की परिभाषा की। मुझे तो नहीं लगता कि आपको शायद यह भी पता नहीं होगा कि आलोचना शब्द किन संधियों से मिलकर बना होता है। अगर है हिम्मत तो बताइये अपना सही नाम। और अगर आप डरपोक हैं तो बन्द कर दीजिये इस ब्लाग। महज अपने अहम की संतुष्टि के लिये कुछ भी कचरा लिख देते हैं। आप जैसे लोगों ने ही साहित्य की विधाओं को बदनाम किया हुआ है।

एक अनसुलझी पहेली : जिन्दगी said...
शर्म आती है आप पर और आपकी जाहिल टिप्पणियों पर। अगर कुछ भी शर्म बाकी हो तो चुल्लू भर पानी में डूब जाइये। समझते क्या हैं आप अपने आपको। कभी जिन्दगी में सही आलोचना लिखी है आपने। मुझे गिने चुने विख्यात आलोचकों के नाम उनकी समीक्षक पुस्तक के साथ ही बता दीजिये.... असंभव आप बता नहीं पाएंगे मि. मसिजीवी एण्ड मि. आलोचक। अब जैसे लोग आलोचना की विधा का गलत उपयोग करते हैं।

ये टिप्पणिया मै सब के साथ इस लिए बाट रहा हू क्योकि मुझे इन को पढ कर बहुत हसी आई तो मैने सोचा क्यो न सबको हसने का थोडा सा अवसर मिल जाये। ये टिप्पणिया जस की तस मेरे ब्लाग पर से यहा उठा कर रख दी गयी है।
खैर इन टिप्पणिओ का जवाब भी दिया है मसिजीवी ने- वही आलोचक के ब्लोग पर।
इस सारे प्रकरण के बाद जो मुझे सही लगता है सो दर्ज कर रहा हू हो सकता है कुछ चिटठाकारो को यह बिल्कुल गलत लगे । उनका भी मै सम्मान करता हु. मेरे हिसाब से नारद को किसी भी , लेख या टिप्पणी को मोड्रेट या फिर ब्लोक नही करना चाहिए चाहे वो जेसी भी हो। वह छपनी जरुर चाहिए, चित्ठाकारो तक पहुचनी ज़रूर चाहिए। आगे काम चिट्ठाकारो का है, कि उसे कितना सम्मान दे. अगर किसी को पसन्द है तो उसे पडे ओर उस पर टिप्पणी करे अन्यथा छोड दे।
जहा तक मुखोटो या प्रोफाइल की बात है मुझे लगता है वयक्ति की बैकग्राउन्ड, फोटोग्राफ, या फिर नाम से ज्यादा जरुरी हे कि उसको उसकी सोच, विचार, व दर्शन से पहचाना जाये । अगर चर्चा करनी है तो व्यक्ति के बारे मे नही बलकि उसकी सोच, उसके विचार की चर्चा करनी चाहिए ।

सहमति - असहमति विवाद के ऊपर कटाक्श पूर्ण चुटकला पढना चाहते है तो रविरतलामि का यह पोस्ट जरुर पडे।वैसे विवाद पर लिखना,चाहे व्यन्ग्य ही हो, विवाद मे शामिल होना ही है ;और यह सबसे सुरक्शित तरीका है !!

4 टिप्‍पणियां:

मसिजीवी ने कहा…

लेकिन फिर भी मिंया आलोचक लोगों को ये तो बता दो कि तुम तुम हो या मैं यानि मसिजीवी ही। वैसे उम्‍मीद है तुम धुरविरोधी को भी पढ़ रह हो साथ साथ। इसलिए चलो इस प्रकरण को समाप्‍त मानें और आगे चलें

सुजाता ने कहा…

विवाद बडी तेज़ी से खडे होते है और वैसी ही तेज़ी से फीके भी पड जाते है.विचार सतत और जीवन्त है. चलिए, आगे बडे. आपका विरोध दर्ज किया जा चुका. मसिजीवी जी और आलोचक के डबल रोल वाला मसला अल्पजीवी है. वहम का यू भी इलाज नही होता. शुभ्कामनाए आलोचक जी!!

रवि रतलामी ने कहा…

"...वैसे विवाद पर लिखना,चाहे व्यन्ग्य ही हो, विवाद मे शामिल होना ही है ;और यह सबसे सुरक्शित तरीका है !!..."

और, जाहिर है, मैंने सबसे सुरक्षित तरीका ही अपनाया, हमेशा की तरह!

Srijan Shilpi ने कहा…

@ मसिजीवी जी, नोटपैड जी और/अथवा आलोचक जी,

ये समझ में आता है कि हिन्दी पढ़ने-पढ़ाने और उसमें शोध करने और कराने वालों के लिए घिस-पिट के अप्रासंगिक हो चुके विषयों की नीरसता से बचने के लिए ऑनलाइन हिन्दी की तरफ रुख़ करना जरूरी हो गया है। लेकिन हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रयोजन और प्रकृति को ढंग से समझे बगैर और ख़ुद उसमें गहरे उतरे बगैर आप लोग इतने पंडिताऊ ढंग से बातें करने लग जाते हो, यह मेरी समझ में नहीं आता।

आपलोगों को मुखौटे लगाने का शौक है, लगाओ। लेकिन अपने इरादे साफ करो, गैंगबाजी मत करो। मेरी जानकारी में कोई ऐसी आचार-संहिता नहीं बनी है और न ही उसकी बात कहीं की गई है, जिसको लेकर आपलोग इतनी हाय-तौबा मचाए जा रहे हो।

मै एक इन्डीविजुअल